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कविता

कोटा की दौड़

विनीता परमार


भागलपुर अजमेर एक्सप्रेस
भरी ट्रेन मे थोड़ी सी जगह
मिलने के बाद,
कहाँ जा रहे हैं आप?
अजमेर अमन की दुआ में
या जयपुर घूमने,
नहीं समय है अपने पास
बिटिया है मेरे साथ
कोटा तक का है सफर,
अरे! कोटा तो बूँदी की शान है,
ये तो हाड़ाओं की आन है,
कोटा डोरी की अलग ही बान है
कोटा के पत्थर तो घरों में बोलते हैं,

गुजरे जमाने की बात है ये
कोटा की तो अब नई पहचान है,
लाखों करोड़ की रोटेशन है यहाँ
हजारों की बैच बनती है
कैरीयर, एलेन, रेसोनेन्स, वाइब्रेन्ट, बंसल
जाने क्या-क्या नाम हैं इनके
कुकुरमुत्ते से भी तेज फैलते हैं
देश के नए उत्पाद यहीं से निकलते हैं,
सपनों की उड़ान लिए
हर साल कई आते हैं,
गलाकाट दौड़ मे
कुछ पा लेते है और कुछ
जेब ढीली कर यूँ ही चले जाते हैं
अनगिन में इकाई बनते-बनते रह जाते हैं।


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